Tuesday, October 2, 2007

जिंदगी.....

अपनी बातों को कविताओं और शायरी मे कहते-कहते एहसास हुआ कि हर बात काव्य या गद्य में कही तो जा सकती है पर फर्क होता है, किसी बात के लिए गद्य सशक्त माध्यम है तो किसी बात के लिये काव्य या पद्य। मै अपनी सोच से जीवन के और भी कई दूसरे विषयों और दूसरे भावों को छुना चाहता हूँ। मैं नही जानता की मैं जिंदगी को कितने करीब से जानता हूं पर मै इसे और करीब से जानना चाहता हूँ। सच कहूँ तो जीवन के २५ बसंत देखने के बाद कभी-कभी ये एहसास होता है जैसे मैने जिंदगी को कितने करीब से जान लिया है बस कुछ दिन इस अहंकार मे बितने ही पाते हैं कि जिंदगी कुछ ना कुछ ऐसा नया रंग दिखा जाती है जैसे मानो हस के मुझे कह रही हो की तुम अभी भी बच्चे हो। और ठीक उसी पल सारा अनुभव ये कहते हुये अपना दंभ खुद ही छोङ देता है कि मैने तो सिर्फ पृथ्वी के २५ साल देखें हैं और ये जिंदगी ना जाने कब से....................और जिदगी को जानने कि मेरी रुचि और बढ जाती है