Thursday, September 12, 2013
Wednesday, May 14, 2008
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मैं अपनी सारी रचनाएँ एक ब्लोग पे इकट्ठा कर रहा हूँ
मेरी नयी और पुरानी रचनाओं के लिए मेरा नया ब्लोग देखिये
URL http://apurn.wordpress.com
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Saturday, December 15, 2007
वक़्त
....ऐसे तो कई बार जिन्दगी ऐसी जगह पर ला के खडा कर देती है जहाँ से आगे बढ़ना बहुत मुश्किल सा लगता है पर ये तो हम भी जानते हैं की इसका कोई इलाज नहीं हैं सिर्फ ही एक तरीका है ..... इंतजार .....कि कभी तो सब कुछ ......
पर कभी कभी जब बहुत ज्यादा परेशान हो जाता हूँ तो एक अजीब सा गुस्सा जाने किस्से , शायद जिन्दगी से ही रहता है कि मैन क्यु जियूँ तुम्हे ? कई बार तो लगता है जैसे हम किसी 'जानवर' कि तरह है कहीं चलने का मन नहीं है पर कोई है जो जबरदस्ती हमारे गले में बधि रस्सी को घींच के हमे घसीट के ही सही पर चलने के लिए मजबूर कर रहा है और हम कभी मन से तो कभी बेमन से बस चलते चले जाते हैं !
पहले मैं ये सोच के परेशान रहता था कि मेरे गले कि रस्सी कौन खीच रहा है क्यों मुझे चलने को मजबूर कर रहा है! पर अब जब सोचता हूँ तो लगता है ये कोई नहीं बल्कि खुद 'समय' है जो हमे कहीं एक जगह रहने नहीं देता पर शायद ये अच्छा ही है वरना हम लोग शायद उस जगह से कभी हिल भी नहीं पाएंगे जहाँ हमे कई बार कुछ दर्द ऐसे हालत में छोड़ जाते हें जहाँ चलना तो दूर सोचना समझना भी संभव नहीं होता ! कम से कम ये 'वक़्त' हमे वहाँ से निकालने कि कोशिश तो करता है ...
पर कभी कभी जब बहुत ज्यादा परेशान हो जाता हूँ तो एक अजीब सा गुस्सा जाने किस्से , शायद जिन्दगी से ही रहता है कि मैन क्यु जियूँ तुम्हे ? कई बार तो लगता है जैसे हम किसी 'जानवर' कि तरह है कहीं चलने का मन नहीं है पर कोई है जो जबरदस्ती हमारे गले में बधि रस्सी को घींच के हमे घसीट के ही सही पर चलने के लिए मजबूर कर रहा है और हम कभी मन से तो कभी बेमन से बस चलते चले जाते हैं !
पहले मैं ये सोच के परेशान रहता था कि मेरे गले कि रस्सी कौन खीच रहा है क्यों मुझे चलने को मजबूर कर रहा है! पर अब जब सोचता हूँ तो लगता है ये कोई नहीं बल्कि खुद 'समय' है जो हमे कहीं एक जगह रहने नहीं देता पर शायद ये अच्छा ही है वरना हम लोग शायद उस जगह से कभी हिल भी नहीं पाएंगे जहाँ हमे कई बार कुछ दर्द ऐसे हालत में छोड़ जाते हें जहाँ चलना तो दूर सोचना समझना भी संभव नहीं होता ! कम से कम ये 'वक़्त' हमे वहाँ से निकालने कि कोशिश तो करता है ...
Tuesday, October 2, 2007
जिंदगी.....
अपनी बातों को कविताओं और शायरी मे कहते-कहते एहसास हुआ कि हर बात काव्य या गद्य में कही तो जा सकती है पर फर्क होता है, किसी बात के लिए गद्य सशक्त माध्यम है तो किसी बात के लिये काव्य या पद्य। मै अपनी सोच से जीवन के और भी कई दूसरे विषयों और दूसरे भावों को छुना चाहता हूँ। मैं नही जानता की मैं जिंदगी को कितने करीब से जानता हूं पर मै इसे और करीब से जानना चाहता हूँ। सच कहूँ तो जीवन के २५ बसंत देखने के बाद कभी-कभी ये एहसास होता है जैसे मैने जिंदगी को कितने करीब से जान लिया है बस कुछ दिन इस अहंकार मे बितने ही पाते हैं कि जिंदगी कुछ ना कुछ ऐसा नया रंग दिखा जाती है जैसे मानो हस के मुझे कह रही हो की तुम अभी भी बच्चे हो। और ठीक उसी पल सारा अनुभव ये कहते हुये अपना दंभ खुद ही छोङ देता है कि मैने तो सिर्फ पृथ्वी के २५ साल देखें हैं और ये जिंदगी ना जाने कब से....................और जिदगी को जानने कि मेरी रुचि और बढ जाती है
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